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घर छात्रों की कहानियां

कहानियाँ

विद्याज्ञान के छात्र अपनी यात्रा के बारे में अपनी कहानियों को बताते हैं कि उनके जीवन में कितनी तेजी से बदलाव आया है।

शिखा सिरोही

शिखा बुलंदशहर के निकट के एक गाँव से आती हैं। उनके पिता एक लघु किसान हैं तथा माता एक गृहणी हैं। चूंकि वो अपने परिवार की इकलौती कन्या संतान हैं शिखा की दिनचर्या में अपनी माँ की दैनिक घरेलू कार्यों में सहायता करने और अपने प्राइमरी विद्यालय में पढ़ने के अतिरिक्त और भी अनेक कार्य सम्मिलित थे। घर की देखरेख में सहयोग करना उनकी प्राथमिक जिम्मेवारी थी। हालांकि, विद्यालय में अपनी अनियमित उपस्थिती के बावजूद उनके शिक्षकों तथा प्रधानाचार्य ने उनको एक ऐसी मेधावी छात्रा के रूप में पहचान लिया था जिसमें कौतूहल और सीखने की भूख थी। शिखा उन दस हजार छात्रों में से थीं जिन्होंने 2009 में विद्याज्ञान स्कूल की पहली प्रतियोगिता परीक्षा में भाग लिया था और उन 200 चयनित छात्रों में से एक थीं जिनके साथ विद्यालय की नींव राखी गयी थी।

उनकी कहानी मात्र इसलिए महत्वपूर्ण नहीं है कि शिक्षा ने उनके जीवन को पूर्णतः परिवर्तित कर दिया बल्कि इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि उनकी कहानी उनके गाँव के उनके अनेक सहपाठियों के जीवन को छुआ और उनमें से अनेक को बेहतर शिक्षा प्राप्त करने के लिए उत्साहित करने में सहायक रही। वह CBSE की कक्षा XII की परीक्षा में 97 प्रतिशत अंकों के साथ शीर्ष पर रहीं। उन्होंने अपने गाँव में एक आदर्श स्थापित किया है कि लड़कियां भी सही मौका और मंच मिलने पर सफलता अर्जित कर सकती हैं।

अपनी इस क्रांतिकारी यात्रा में शिखा ने भारत के सर्वोच्च महाविद्यालयों में से एक दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉलेज में प्रवेश पाने में सफलता अर्जित की। आज उनकी इस यात्रा से उत्साहित होकर उनका पूरा गाँव लड़कियों की शिक्षा की वकालत करता है तथा उनके साथ समानता का व्यवहार करता है जो देश में लिंग आधारित भेदभाव वाले सामाजिक परिप्रेक्ष्य में एक सराहनीय उपलब्धि है।

वैशाली

मुरादाबाद जिले के फैदपुर जसकोली नाम के छोटे से गाँव से आने वाली वैशाली के परिवार मे चार सदस्य हैं। उनके पिता एक किसान हैं और माता गृहणी हैं। 2009 में विद्याज्ञान में आने वाली वैशाली में प्रारम्भ से ही तीक्ष्ण बुद्धि परिलक्षित होती थी। वो लगातार अपनी कक्षा में शीर्ष पर रहीं।

मेधावी और महत्वाकांक्षिणी वैशाली स्नातक स्तर पर जन संपर्क तथा राजनीति विज्ञान पढ़ने को उत्सुक थी। उनकी इच्छा थी की इसके बाद अंतर्राष्ट्रीय संबंध या कानून में परास्नातक उपाधि अर्जित करेंगी। उन्हें इस विषय के गूढ़ तत्वों की गहरी समझ है तथा नीतिशास्त्र और नैतिक दुविधाओं का अध्ययन पसंद करती हैं।

उन्हें माइकल संदेल की सीरीज “जस्टिस” देखना बहुत पसंद है। अपने ज्ञान क्षितिज को और व्यापक बनाने की दिशा में प्रयासरत वैशाली दर्शन शास्त्र पर अच्छी पुस्तकों का अध्ययन कर रही हैं जो आकर्षक रूप से चुनौतीपूर्ण है।

वर्तमान में वे अमहर्स्ट (अमेरिका) के मस्साचुसेट्स विश्वविद्यालय से स्नातक कर रही हैं।

शुभम कुमार

एक कुम्हार के पुत्र शुभम कुमार को बचपन से ही ज्यामितीय चित्र आकर्षित करते थे। उन्होने मिट्टी के बर्तन बनाने में कला के दर्शन किए थे। बचपन में पिता के लिए अपनी माता के साथ मिलकर मिट्टी तैयार करते हुए उनके मन में अभिकल्पना (designing) के प्रति रुझान पैदा हुए। उनके पिता ने बर्तन बनाने का काम छोड़ कर पहले खेती शुरू की और बाद में अपनी किराना की छोटी सी दुकान खोल ली। छः लोगों के उनके परिवार जिसमें उनके बुजुर्ग दादा जी भी हैं का भरण पोषण करने के लिए कमाने वाले इकलौते सदस्य उनके पिता जी ही हैं। उनके दादा जी तथा माता जी अधिकांश समय बीमार ही रहते हैं अतः उनके पिता को डॉक्टर का बिल तथा औषधियों के खर्चे भी उठाने पड़ते हैं।

शुभम कुछ बड़ा करना चाहते हैं। वे मिट्टी के बर्तन बनाने के क्षेत्र में कुछ नवाचार स्थापित करने के इक्षुक हैं। शुरू से ही उनके अभिरुचि का विषय उत्पाद अभिकलन (product designing) रहा है लेकिन लंदन कॉलेज ऑफ फ़ैशन में आयोजित एक कार्यशाला में भाग लेने के बाद उन्हें आभास हुआ कि उन्हें इस विषय पर अध्ययन करना चाहिए। उनकी आकांक्षा है की अपने हुनर से वो कुम्हारों के उत्पादों के विपणन में उनकी मदद करें।

उन्हें लंदन कॉलेज ऑफ फैशन से प्रवेश का प्रस्ताव प्राप्त हुआ था किन्तु आर्थिक तंगी के कारण वे इसे स्वीकार नहीं कर सके। वर्तमान में वे दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट्स में अध्ययनरत हैं।

निशा भारती

विद्याज्ञान का नाम ऊंचा करने वाली एक और प्रतिभावन छात्रा हैं । उत्तर प्रदेश के बुधेरा गाँव की रहने वाली होनहार युवती निशा भारती जो अपने सहपाठियों से जरा भी भिन्न नहीं हैं। उनके मजदूर पिता मुश्किल से तीन हजार रुपये महीने के कमा पाते हैं। दस लोगों के उनके परिवार का पोषण करने में उनकी माता जी का भी योगदान होता है जो दूध बेचती हैं।

अपने विद्याज्ञान प्रवास के दौरान निशा सदैव परिश्रमी, समर्पित तथा निष्ठावान छात्रा रही हैं। वह न सिर्फ अपने अकादमिक प्रदर्शन में अच्छी रही हैं बल्कि उन्होंने खेलकूद में भी अपनी निपुणता सिद्ध की। उनहोंने राष्ट्रीय स्तर पर अथेलेटिक्स (4 x 400 मी.) में भाग लिया तथा डिस्कस थ्रो और शॉट पुट खेलों में भी अच्छा प्रदर्शन किया। उन्होंने अंतर्विद्यालय पेंटिंग (Magic with Colors) प्रतियोगिता में भाग लेकर अपने विद्यालय का सम्मान बढ़ाया।

निशा विद्याज्ञान में अपने कनिष्ठ छात्रों की सलाहकार भी रही हैं और उन्होंने अपने गाँव में छोटे बच्चों के बीच अपने विद्यालय की दूत के रूप में भी काम किया है।

उन्होंने कक्षा XII में 91.6 प्रतिशत अंक अर्जित किए और राष्ट्रिय प्रौद्योगिकी संस्थान, जोधपुर में अपने लिए स्थान सुनिश्चित किया। आजकल वे इसी संस्थान से बैचलर ऑफ डिजाइन पाठ्यक्रम में अध्ययनरत हैं।